Sunday 21 January 2018

मत उदास हो


मत उदास हो थके मुसाफिर
कुछ श्रम बिंदु बिखर जाने से
यह पथ और निखर जायेगा।


रोक सकी कब पागल रजनी
आने वाली सलज उषा को
बाँध न पाई काली बदली
उगते रवि की विकल प्रभा को 


अपराजित निशीथ घट-घटकर
अभिनव पूनम को पायेगा।।


कब विकास के चरण रुके हैं
बीते युग की मनुहारों से
ठिठकी नहीं चेतना जन की
भावी भय की बौछारों से 


सम्भव है आने वाला कल
कोई ज्योति शिखर लायेगा।।


सहमी नहीं नवेली नदिया
कंकरीले पथ या खारों से
गति पाई है गिरते-उठते
ऊँचे पर्वत की धारों से 


बढ़ते जाना रे! अंकुर तू
हर दिन और निखर जायेगा।।


***** मधु प्रधान

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