Sunday 31 December 2017

एक गीत - नववर्ष पर


नये वर्ष संकल्प करें हम,
मिलजुल कर कुछ नया करें।


बड़ी प्रबल है वक्त मार की,
सहयोगी मन जिया करें।
क्षणभंगुर ये जीवन अपना,
मिलजुल लय में बहा करें।। 

अपनों के सँग थोड़े से दुख,
आपस में सब सहा करें ।
नये वर्ष संकल्प करें हम

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यादों की भरपूर पोटली,
हृदय समाये रहती है।
हृदय छिपी बातें सब अपनी,
दुखती रग में बहती है।।
इसीलिए सन्देश यही है -
हम बतियातें रहा करें।
नये वर्ष संकल्प करें हम

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हँसते चेहरों के पीछे भी,
दुख होते सबके अपने।
दुख-सुख को साझा करने से,
पूर्ण करे शायद सपने।।
मिलने के कुछ नए बहाने,
मन में बुनते रहा करें।
नये वर्ष संकल्प करें हम


*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 24 December 2017

राह/मार्ग समानार्थी दोहे


जिसने साहस, धैर्य से, किया लक्ष्य संधान।
पथ प्रशस्त उसका हुआ, मिली उसे पहचान।।1


कामयाब वह ही हुआ, जिसके दिल में चाह।
मंजिल तक लेकर गई, कहो किसे कब राह।।2


पथ का संबल प्रेम यदि, रहे पथिक के पास।
मुश्किल झंझावात से, होता नहीं उदास।।3


मार्ग वही होता उचित, जो सिखलाए प्रीति।
साथ अकिंचन के रहे, दूर करे उर भीति।।4
 


देखो चलता जा रहा, कब से एक गरीब।
मंजिल छोड़ो राह के, पहुँचा नहीं करीब।।5


डाॅ. बिपिन पाण्डेय


Sunday 17 December 2017

कुछ दोहे - मनभावन


अग्नि परीक्षा की घड़ी, आग मिला मजमून।
ताप-ताप कर लिख दिया, ऐसा चढ़ा ज़ुनून।।1।।


आग उगलता आदमी, बना आज शैतान।
खुद ही खुद को मानता, भ्रमवश ही भगवान।।2।।


जब-जब लग जाती जहाँ, जवां दिलों में आग।
तब यह शुभ संकेत ही, कहलाता अनुराग।।3।।


सीने में जब आग हो, बढ़ें निरंतर स्वार्थ।
तब केशव कहते यही, धनुष उठाओ पार्थ।।4।।


तप-तपकर ही आग में, सोना होता शुद्ध।
तप करके इंसान भी, बन जाता है बुद्ध।।5।।


**हरिओम श्रीवास्तव**

Sunday 10 December 2017

प्रेम होना चाहिए




धन नहीं धरती नहीं मुझको न सोना चाहिए
हर हृदय में सिर्फ सच्चा प्रेम होना चाहिए

स्वार्थ का है काम क्या इस प्रेम के संसार में
त्याग की ईंटें लगी हों प्रीत के आधार में
प्रेम से संसार का हर दीप्त कोना चाहिए 
हर हृदय में सिर्फ सच्चा प्रेम होना चाहिए

प्रेम का उत्तर घृणा हो यह नहीं समुचित कभी
प्रेम के पथ पर गमन होता नहीं अनुचित कभी 
प्रेम वितरण अवसरों को नित सँजोना चाहिए
हर हृदय में सिर्फ सच्चा प्रेम होना चाहिए

प्रेम में है कौन जीता व्यर्थ है यह प्रश्न भी
प्रेम में हारा वही उसका मनाता जश्न भी
हार का मन पर न कोई बोझ ढोना चाहिए
हर हृदय में सिर्फ सच्चा प्रेम होना चाहिए

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी

Sunday 3 December 2017

यह कैसा इन्तिज़ार

 


हार गया हूँ प्रेमनगर मैं अपने नीति-निधान का,
इन्तिज़ार अब मुझको केवल साँसों के अवसान का।


सपनों का स्पंदन टूटा भाव प्रेम के सिसक रहे,
धूल-धूसरित प्रणय पताका, अंतस के पट झिझक रहे,
युग सिमटा है पल में आकर मेरे कर्म विधान का,
इन्तिज़ार अब मुझको केवल साँसों के अवसान का।


चक्रवात सा दर्द घुमड़ यूँ जीवन के पथ पर आया,
आँखों का गंगाजल बहकर सागर खारा कर आया,
सावन बनकर विरह बरसता मुझपर आज जहान का,
इन्तिज़ार अब  मुझको केवल साँसों के अवसान का।


सप्तपदी के सात जन्म हित सातों वचन भुलाकर वह,
सातों अंबर पार कर गया तन्हा मुझे सुला कर वह,
हुआ दर्द से रिश्ता अविचल मेरे हर अनुमान का,
इन्तिज़ार अब मुझको केवल साँसों के अवसान का।


***** अनुपम आलोक

छंद सार (मुक्तक)

  अलग-अलग ये भेद मंत्रणा, सच्चे कुछ उन्मादी। राय जरूरी देने अपनी, जुटे हुए हैं खादी। किसे चुने जन-मत आक्रोशित, दिखा रहे अंगूठा, दर्द ...