Sunday 22 October 2017

दीवाली के दोहे


जब लौटे वनवास से, लखन सहित सियराम।
दीपों से जगमग हुआ, नगर अयोध्या धाम।।1।।


जलते दीपों ने दिया, यह पावन संदेश।
ज्योतिपुञ्ज श्रीराम हैं, रावण तम के वेश।।2।।


देवी कल्याणी रमा, कृपा करें इस बार।
हर घर में हो रौशनी, भरे रहें भंडार।।3।।


जलता दीपक एक ही, तम को देता चीर।
बुझे दीप को जारकर, लिखे नयी तकदीर।।4।।


जले दीप से दीप तब, बदलेगा परिवेश।
ज्ञानदीप से कट सकें, जीवन के सब क्लेश।।5।।


***हरिओम श्रीवास्तव***

No comments:

Post a Comment

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...