Sunday 10 September 2017

कह मुकरी


(1)


मेरे साथ-साथ वह जाए,
फिर सब पर ही रौब जमाए,
कर देता सबको ही ठंडा,
क्या सखि साजन? नहिं सखि “डंडा”।।


(2)


साथ-साथ वह आता-जाता,
लिपट चिपट कर प्यार जताता,
उसके संग फिरूँ मैं भागी,
क्या सखि साजन? नहिं सखि “डॉगी”।।


(3)


साथ-साथ वह मेरे जाए,
खुलकर अपने रँग बिखराए,
मगर मुझे वह दिल से भाता,
क्या सखि साजन? नहिं सखि “छाता”।।


(4)


उसके बिन पड़ता नहिं चैना,
लड़ते सदा उसी से नैना,
साथ-साथ थोड़ी इसमाइल,
क्या सखि साजन? नहिं “मोबाइल”।।


**हरिओम श्रीवास्तव**

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