Sunday 9 July 2017

बड़ा मुश्किल - एक नवगीत


बड़ा मुश्किल
समय के साथ चल पाना
बड़ा मुश्किल


कभी ये शाह बनता है
बड़ा ये चोर है लेकिन
बदलता रंग बोल़ों के
मचाता शोर ये लेकिन


बड़ा मुश्किल
समय के साथ बतियाना
बड़ा मुश्किल


कभी ये बघनखे पहने
कभी महका गुलाबों सा
कभी पढ़ता अमृत मंतर
कभी बहका शराबों सा


बड़ा मुश्किल
समय के मंत्र पढ़ पाना
बड़ा मुश्किल


हँसा था साथ में अपने
सजी थी आरती आँगन
समय ने अब कहाँ पटका
अकेले इस सघन कानन


बड़ा मुश्किल
समय के साथ निभ पाना
बड़ा मुश्किल

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*** बृजनाथ श्रीवास्तव

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