Sunday 19 March 2017

न तेरा न मेरा

 
यही झगड़ा सदा से है कि तेरा है कि मेरा है
समझता पर नहीं कोई कि चिड़िया का बसेरा है


लिखा लेते वसीयत हम सभी घर बार दौलत की
मगर ले कुछ नहीं जाते हमें लालच ने घेरा है


नहीं मालूम अगले पल यहाँ होंगे वहाँ होंगे
निभाने को किया वादा नहीं होता सवेरा है 


कफ़न के बाद भी ख़्वाहिश बची रहती ज़माने की
दफ़न के बाद भी रहता यहीं दो गज़ का डेरा है 


भुला देता ज़माना हर किसी को बाद मरने के
मगर रहता वही है याद जिसका दिल में डेरा है


*** अशोक श्रीवास्तव, रायबरेली

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