Sunday 26 February 2017

एक गीत - किस्से कहानी के



पुराने
दिन कभी इस पेड़ के भी,
थे जवानी के।


बसंती किसलयों ने थे,
दिए हँसकर मृदुल गहने,
लजीली फूँल गंधों संग,
हवाएँ थी लगी बहने।


यहीं पर,
खेलता था खेल सावन,
धूप पानी के।


सवेरे व्योम पाँखी,
डाल पत्ती पर उतरते थे,
दिशाओं में मधुर संगीत,
के सरगम सँवरते थे।


यहीं पर,
दीप जलते मंत्र पढ़ते,
माँ भवानी के।


समय गुज़रा कि दिन बदले,
हवा बदली झरे पत्ते,
हुई कंकाल देही पर,
हवाओं के वही रस्ते।


हुए बस,
फूल फल तन पात्र अब,

किस्से कहानी के।

*** बृजनाथ श्रीवास्तव

Sunday 19 February 2017

कामयाबी




ख़्वाहिशों के पर लगा परवाज़ जो भरता रहा है
चाँद छूने का इरादा दिल में जो रखता रहा है
आँधियाँ हों या कि तूफ़ाँ पर कभी डरता नहीं जो
कामयाबी मुट्ठियों में वो सदा करता रहा है 


*****प्रमिला आर्य*****

Sunday 12 February 2017

आशा/उम्मीद के भाव पर एक रचना

 
नाना विधि धोया अंगन को, मल-मल के तन स्नान कियो।
फिर समय उचित परिधान पहन, प्रभु का मन से गुणगान कियो।
आँगन में तुलसी को पूजा, हर्षित मन से जलदान कियो।
मन में ले कुशल कामना फिर, परदेशी पिय को ध्यान कियो।


श्यामल केशों का नीर छटक, फिर नूतन चोटी गुहि डाली।
कंगन, चूड़ी, झुमकी पहनी, फिर नाक में नवनथनी डाली।
मुख पे मयंक, कुंदन काया, होठों पे चमके कछु लाली।
सोलह शृंगार करे गोरी, पिय अगवानी में मतवाली।


*** रणवीर सिंह 'अनुपम' ***

Sunday 5 February 2017

रोना/रुदन पर दो कुण्डलिया




1.

रोना सब रोते यही, बुरा समय है आज।
भ्रष्टों का ही राज है, कैसा हुआ समाज।।
कैसा हुआ समाज, बात हर कोई करता।
जिसका लगता दाव, वही अपना घर भरता।।
करने भर से बात, नहीं कुछ भी है होना।
बातों के जो वीर, उन्हें बस आता रोना।।


2.


रोना रोने से कभी, मिलता नहीं निदान।
कर्म कला करती रही, हर मुश्किल आसान।।
हर मुश्किल आसान, ज़माने का रुख़ मोड़ो।
करो सदा संघर्ष, कभी मैदान न छोड़ो।।
लिखो कर्म से भाग्य, रुदन से क्या है होना।
अकर्मण्य जो लोग, पड़ेगा उनको रोना।।


***हरिओम श्रीवास्तव***

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

  रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये बढ़ते हैं भाव...