Sunday 28 August 2016

जन्माष्टमी पर विशेष




कान्हा की मतवारी दुनिया
जपती राधा रानी दुनिया


मुरली की जब तान सुनाये
सुध बुध खोये सारी दुनिया 


पल भर में बदले है जीवन
लीला देखे न्यारी दुनिया 


जब जब दुष्ट बढ़े धरती पर
कान्हा तुमने तारी दुनिया 


गीता का उपदेश दिया तब
अपनों से जब हारी दुनिया


आओ कान्हा फिर धरती पर
है पापों से भारी दुनिया


मिलती नहीं 'अर्चना' खुशियाँ
अब अँसुवन से खारी दुनिया


***** डॉ अर्चना गुप्ता

Sunday 21 August 2016

रक्षा बंधन पर एक गीत




रक्षा बन्धन पर्व देश में, खुशियों का त्यौहार,
करे बहन भाई आपस में, स्नेह भरा इजहार।


बाँध कलाई पर ये राखी, करे प्रेम मनुहार,
एक डाल की शाखाओं में, सच्चा प्यार दुलार,
रेशम के कच्चे धागे में, छुपा बहन का प्यार,
रक्षा बन्धन पर्व देश में, खुशियों का त्यौहार।


बहन द्रौपदी की केशव ने, रक्षा की भरपूर,
चीर वस्त्र से उसे बचा के, किया कष्ट यूँ दूर,
सामाजिक रिश्ते भारत में, शास्वत प्रेम के द्वार,
रक्षा बन्धन पर्व देश में, खुशियों का त्यौहार।


युग-युग होता भ्रात बहन का, रिश्तों का संसार,
साथ निभाने का धागे में, वादों का आधार,
मिला हुमायूँ को भी देखो, कर्णावति का प्यार,
रक्षा बन्धन पर्व देश का, खुशियों का त्यौहार।


सरिता सी पावन बहना से, विकसित यहाँ समाज,
तज कर नेह कुटीर हृदय में, भरे प्यार का साज,
उर मरुथल को सींच नेह से, करती प्यार अपार,
रक्षा बन्धन पर्व देश में, खुशियों का त्यौहार।


  ***** लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

Sunday 14 August 2016

आज़ादी पर दोहे


फीका फीका सा लगे, आज़ादी का जश्न ।
जब तक जीवित देश में, जाति धर्म के प्रश्न ।।1।।
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बढ़ता जाता नित्य प्रति, बैठ देश के अंक।
बेबस से सब हैं खड़े, डरा रहा आतंक।।2।।
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चहुँ दिशि फैला दिख रहा, भ्रष्टाचारी जाल।
गति विकास की मंद है, लेती नहीं उछाल ।।3।।
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अड़सठ सालों बाद भी, जनता दिखती त्रस्त।
चुने गए प्रतिनिधि सभी, हैं अपने में मस्त ।।4।।
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बेमानी सी लग रही, आज़ादी की बात।
दलित वर्ग है खा रहा, नित प्रति घूसे लात।।5।।
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बस जनता के नाम पर, बने नीतियाँ रोज।
नीति नियंता खा रहे, नित होटल में भोज।।6।।
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पढ़े लिखे हैं लोग जो, घूम रहे बेकार ।
साधन सीमित देश में, कैसे हो उपचार ।।7।।


***** डाॅ. बिपिन पाण्डेय

Sunday 7 August 2016

अपनी कुटिया अपनी छानी


तंग दिलों से तो सच्ची है
बंद घरों से तो अच्छी है
अपनी कुटिया अपनी छानी


छप्पर टपके नेह मेह बन
घर बखरी में तिरते बर्तन
चढ़ी समीरन बारिस बूँदे
भर जाती मेरा घर निर्जन
मानो चलकर ख़ुद आया हो
याचक द्वारे वारिद दानी
अपनी कुटिया अपनी छानी


सीली सीली कुर्ती पहने
भाभी तेरी छैल-छबीली
शोख तपिश तन-मन दे जाती
तिरछी चितवन नैन कटीली
राजमहल सी लगती टपरी
मै राजा वो मेरी रानी
अपनी कुटिया अपनी छानी


बूढ़ा बरगद होता गदगद
महके जब भी मादक पाटल
नीर-क्षीर की बूँद नाचती
पहन पवन की रुनझुन पायल
मन सन्यासी गीत सुनाता
छप्पर बरसे भीगे पानी
अपनी कुटिया अपनी छानी


***** गोप कुमार मिश्र

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...