Sunday 26 June 2016

मद/मदिरा/सुरा पर दोहे

 
मधुशाला में शोर है, गणिका गाये राग। 
जाम भरा ले हाथ में, पीने से अनुराग1

चषक लिये है साकिया, इतराती है चाल
सब पीकर है नाचते, ठुमकत दे दे ताल2


प्याला पीकर रस भरा, केवल रब का भान
लघुता या बड़ पन नहीं, सभी एक ही जान3


हाला पीकर बावला, बजा रहा है गाल
सिर के ऊपर नाचता, स्वर्ण चषक ले काल4


मद ममता मानी मना, मोद मेखला माल
तजिये तेवर त्याग तम, तंज तेवरी ताल5


***** जी.पी. पारीक

Sunday 19 June 2016

एक गीत - ज़िन्दगी


ख़ुश है न! जो अब गूँजती लय ताल है,
तेरा सुना ऐ ज़िन्दगी क्या हाल है

 
अब भी मसायल हैं वही या कम हुए,
बेदम रहे जो ख्व़ाब, फिर कायम हुए ?
क्या वक़्त ने ढीले किये तेवर ज़रा,
कुछ फूल भी हँसकर कभी हमदम हुए ?


या फिर वही, ढीली पुरानी चाल है,
तेरा सुना ऐ ज़िन्दगी क्या हाल है


बदले मिले क्या अब तुझे मंज़र यहाँ,
ईकाइयों में बँट चुके से घर यहाँ,
बाजार ही अब आंगनों पे छा गया,
छोटे अहम् हैं और भारी सर यहाँ,


गलती नहीं अब हर किसी की दाल है!
तेरा सुना ऐ ज़िन्दगी क्या हाल है


निर्बाध रखना अब ख़ुशी को राह में
दीवानगी कायम रहे इस चाह में,
ये हुस्न तेरा साँस पर तारी रहे,
हम भी जियें खुलकर कभी उत्साह में,


रखना हरी हर आस की इक डाल है,
तेरा सुना ऐ ज़िन्दगी क्या हाल है


***** मदन प्रकाश

Sunday 12 June 2016

दिनकर

 
रक्तिम आभा ले उगता है, प्राची में दिनकर,
उषा किरण की डोली बैठी, धूप नवल चढ़कर।
आशाओं की डोरी थामे, भोर उतरती है,
सृष्टि रचयिता धरणी हँसती, फूलों पर थमकर।


दिनकर सौंपे विकल धरा को, सतरंगी चूनर,
दूर क्षितिज में सेज नगों की, लेता बाँहों भर।
पंछी कलरव करते मधुरिम, मंगल गान करें,
प्रखर दीप्त, आलोकित, अरुणिम, दृश्य बड़ा मनहर।


वीर बहूटी धरा प्रणय की, पाती पढ़ पढ़ कर,
दान बाँटती मंजुलता का, दसों दिशा खुलकर।
प्रकृति नटी का रूप सलोना, ईश्वर की लीला,
द्रुमदल, कंज, भ्रमर हँस कहते,''जीवन है सुंदर"।।


***** दीपशिखा सागर

Saturday 4 June 2016

"मंदिर में मनमीत बसाया, मन की सूनी भीति"




दर दर पत्थर पूज रहे हैं, मन मंदिर है सूना सा।
रास हुआ करता महलों में, वृन्दावन है उजड़ा सा।।


आलीशान भवन में शिव हैं, गंगा तीर अधूरा सा।
राम नाम का हो जयकारा, राजनीत का खेला सा।।


देवी माँ को शीश नवाते, माँ का त्याग भुलाया सा।
प्रभु मेरे मन में ही बसना, तुम सँग जीव लुभाया सा।।


***** ममता लड़ीवाल

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...