Sunday 25 December 2016

जीवन-दर्शन



हार-जीत जीवन का संगम, इन से क्या घबराना रे,
सुख-दुःख जीवन के दो पहलू, हँसकर सब सह जाना रे,
जनम-मरण, उत्थान-पतन, सब,प्रभु के हाथ खिलौना रे,
जोर न कोई इन पर चलता, फिर क्यों रोना-धोना रे।


***** विश्वजीत शर्मा 'सागर'

Sunday 18 December 2016

जनम-मरण




जन्म है पहला चरण फिर मौत है अंतिम चरण
आत्मा की देह बदली मात्र है जीवन मरण

ये अजर है और अमर भी कह गए पुण्यात्मा,
लोग कुछ कहते हैं मरती साथ तन के आत्मा,
पर कभी भी आत्मा का है नहीं होता क्षरण
आत्मा की देह बदली मात्र है जीवन मरण

पकड़कर बैठा हुआ है जिंदगी की सूतली,
नाचते रहते इशारों पर बने कठपूतली,
हरि की इच्छा से ही होता है पुनः भू अवतरण
आत्मा की देह बदली मात्र है जीवन मरण

श्रेष्ठ मानव के लिए है मांग ले उसकी शरण,
हो सके सम्भव हमेशा के लिए भव से तरण,
एक पथ केवल बचा है जल्द कर इसका वरण
आत्मा की देह बदली मात्र है जीवन मरण

साथ क्या आया है लेके साथ क्या जाता कभी,
मोह के बंधन है सारे छोड़ कर जाते सभी,
दो पलों में ईश कर लेता यहाँ सब कुछ हरण
आत्मा की देह बदली मात्र है जीवन मरण

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी

Sunday 11 December 2016

ताटंक छंद



कौन काल के गाल समाता, कौन ख़ुशी से जीता है,
किसके घर में कंगाली है, किसका महल सुभीता है?
इस पर मंथन बहुत जरूरी, किसका जीवन रीता है,
कब्जे में अमृत- घट किसके, कौन हलाहल पीता है?


*****राजकुमार धर द्विवेदी

Sunday 4 December 2016

धन/संपत्ति पर दोहे


धन दौलत पर तू नहीं, बैठ कुंडली मार।
पानी ये ठहरा हुआ, होगा बदबूदार।।


आपा-धापी को उडें, हंस भेष में बाज।
सकल सृष्टि धन लूट लूँ, चाह मनुज की आज।।


अर्थ और बस काम को, भोग धर्म के साथ।
सर पर सदा बना रहे, नारायण का हाथ।।


तीन गती धन की कही, श्रेष्ठ प्रथम है दान।
मध्यम भोग विलास है, अंतिम ख़ाक समान।।


दौलत वाले कब हुए, दिल से मालामाल।
दिल से हो धनवान तो, चाकर है "गोपाल"।।


***** आर. सी. शर्मा "गोपाल"

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

  रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये बढ़ते हैं भाव...