Sunday 20 November 2016

चाँद और लहरें



हूँ धरती पर मैं,
चाँद शरद का आसमाँ पर,
लेती अँगड़ाइयाँ
लहराती चाँदनी, 
झूम रही नाच रही
सागर की मचलती
लहरों पर,
अमृत रस बरसा रही
शीतल चाँदनी गगन से,
ठंडी हवा के झोंकों से
सिहरने लगा,
नाचने लगा आज
तन मन यहाँ पर,
लेने लगी
अँगड़ाइयाँ 
मन में मेरे,
मचलने लगे कई ख़्वाब
नैनों में मेरे
लहरों के संग संग


*** रेखा जोशी

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