Sunday 27 November 2016

परेशानी/मुसीबत पर दोहे




परेशान है देख कर, कैसे कैसे लोग
मतलब अपना साध कर, रहे राज सुख भोग।।

मेरा तो मेरा सही, तेरा सो भी मोर
परेशान सब को करे, लोग बड़े गुण चोर

काम किसी का हो नहीं, अटकाना है खूब
परेशान सब को करे, अहम भाव में डूब।।

चींटी के पर आ गये, परेशान सब राम
मिनटो में पर कट गए, धरती गिरी धड़ाम।।

मनवा तो मरकट भया, लपट झपट लब्बूर
परेशान सब को करे, कूद फन्द लंगूर।।

*** जी पी पारीक, राजस्थान

Sunday 20 November 2016

चाँद और लहरें



हूँ धरती पर मैं,
चाँद शरद का आसमाँ पर,
लेती अँगड़ाइयाँ
लहराती चाँदनी, 
झूम रही नाच रही
सागर की मचलती
लहरों पर,
अमृत रस बरसा रही
शीतल चाँदनी गगन से,
ठंडी हवा के झोंकों से
सिहरने लगा,
नाचने लगा आज
तन मन यहाँ पर,
लेने लगी
अँगड़ाइयाँ 
मन में मेरे,
मचलने लगे कई ख़्वाब
नैनों में मेरे
लहरों के संग संग


*** रेखा जोशी

Sunday 13 November 2016

प्रहार कर


हरेक बात गौर कर सुनीति से विचार कर
प्रथम स्वयं की दुष्ट प्रवृति पर प्रहार कर

असीम दुख, प्रताड़ना, अशेष यातना भुगत
भिड़ा रहा है रात दिन, दो जून चून की जुगत
लिए हुए तृषित अधर, जुगाड़ में जो नीर की
फटे वसन बता रहे, व्यथा अनंत पीर की
नहीं दिखा सहार दे, कोई व्यथा से तार दे
नहीं किसी गरीब को अनीति का शिकार कर

प्रथम स्वयं की...

विलासिता प्रधान आज जिंदगी बदल रही
दहेज सम अभी प्रथा समाज में है चल रही
नये चलन नये असर नये विधान कर सृजित
विक्षिप्त हो रहे युवा नशे की आग में ग्रसित
विनाश ले अनेक रूप डस रहा है नाग सा
मनुज के विकास हित कुरीति में सुधार कर

प्रथम स्वयं की...

*** गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत'
बीकानेर (राजस्थान )

Wednesday 9 November 2016

प्रारंभ




आज पहली बार
शुरुआत की थी
उसने
दर्द बाँटने की,
वो औरत थी
और औरत की कहानी
बुनना चाहती थी,
झक सफेद पन्ने में
लिखी इबारत
लहू का रंग दे रही थी,
और हर लफ्ज़ डूबा
ख़ामोश दर्द में,
कलम से रिसती स्याही
अश्क थे उसके,
और नज़्मे भरी थी
सिसकियाँ से,
वो आज भी लड़ रही थी
उस मुकाम के लिये,
जो बुना तो गया
उसके लिये,
पर तोड़ लिये गये
'पाये' मुकाम के,
आज पहली बार
डर के साये से दूर
उसने
शुरुआत की 
अपनी लड़ाई की।

डा.कुसुम जोशी
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

  रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये बढ़ते हैं भाव...