Sunday 27 March 2016

होली के रमझोल




होली के रमझोल रे भैया ..होली के रमझोल
भंग-तरंग में आज सुनाता, मीठे-कड़वे बोल
रे भईया ... होली के रमझोल 


भाई जान के नाजो-नखरे, क्या क्या रंग दिखाए
पल में तोला पल में माशा, नर से नार कहाए
समझ न पाए कोई उनकी, बातें गोलम-गोल
रे भईया ... होली के रमझोल 


कवि भैया जी उछल रहे थे, लेकर हाथ गुलाल
भाभी ने जो खेंच के मारा, नीले पड़ गए गाल
देख नजारा मगर अनोखा, सारे करे किलोल
रे भईया ... होली के रमझोल


भौजी देखो कहते डरती, अपने मन की बात
सारे नर हैं एक ही जैसे, बुरी मरद की जात
भोले से चेहरे के ऊपर, चढ़ा रखा है खोल
रे भईया ... होली के रमझोल 


डंडा लिए हाथ में सैनिक, सब दुशमन को हाँके
हिन्द सेवा और देशप्रेम की, लाल गुलाल है फाँके 
देशप्रेम है सबसे न्यारा, कहता ‘सागर’अनमोल
रे भईया ... होली के रमझोल 


होली के रमझोल रे भैया ..होली के रमझोल
भंग-तरंग में आज सुनाता, मीठे-कड़वे बोल
रे भईया ... होली के रमझोल

  
***** विश्वजीत शर्मा 'सागर'

Sunday 20 March 2016

बुरा न मानो होली है



बुरा न मानो होली है,
कवियों की ये टोली है,
रंग अबीर गुलाल यहाँ,
भंग 'सपन' ने घोली है
। 

 
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होली पर कुछ रंगारंग दोहे -
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होली की शुभकामना, मैं देता हूँ आज

सुधिजन और जनानियां, बनें सभी के काज।1

होली के रँग में रँगे, खेलें रंग गुलाल।
कोई भी रखना नहीं, मन में आज मलाल।।2।। 


भंग सिया जी घोंटती, लिये सपन जी रंग।
तायल और फणीन्द्र के, बदल गये रँग ढंग।।3।।

सागर जी के सँग रजत, मचा रहे हुडदंग।
गौतम जी रँग डालते, पहन पजामा तंग।।4।।

लडीवाल सँग चौधरी, बजा रहे हैं ढोल।
पारिक और सुशील जी, भंग रहे हैं घोल।।5।।


मंजुल जी के सँग रमा, लिये गुलाल अबीर।
भर पिचकारी मारतीं, नयनों से भी तीर।।6।। 


गुझिया लांईं है निशा, और रमा जी खीर।
ब्रह्माणी जी नाचतीं, कविगण हुये अधीर।।7।।


शर्मा जी शरमा रहे, जो ग़ज़लों के वीर।
पिचकारी ले आ गये, सिन्हा जी गम्भीर।।8।। 


आराधना ज्योत्सना, दीपशिखा परमार।
नीता दानिश शजर जी, सब पर चढ़ा खुमार।।9।। 


झूम रहे गोविंद जी, गायब गोपकुमार।
नाच रहे रविकांत जी, गाते राजकुमार।।10।। 


रानो जी दिखतीं सरस, मटकातीं हैं नैन।
नन्हीं के सँग हैं कुसुम, मारें छुप छुप सैन।।11।।


जैन अनीता जी सदा, लिखने में ही व्यस्त।
अनिल और अनमोल जी, अपने में ही मस्त।।12।।


पचलंगिया सतीश जी, भर भर डालें रंग।
हैं संजीव नवीन जी, सभी करें हुडदंग।।13।।


कविगण हैं तुकतान में, सबका यही खयाल।
जो देखे तिरछी नजर, मल दूँ उसे गुलाल।।14।।


**हरिओम श्रीवास्तव**

Sunday 13 March 2016

गीत - प्यार का मेरे बेदर्दी ने



जल-जल करके दीप सरीखे, मैंने खुद को मिटा लिया,
प्यार का मेरे बेदर्दी ने, देखो कैसा सिला दिया।

अपने सारे सुख दे डाले, मैंने उसकी झोली में,
उफ़-उफ़ करके मैं तो जलती, रही प्यार की होली में।

रौंद के मेरी ख़ुशियाँ सारी, ख़ुद के दिल को चमन किया,
प्यार का मेरे बेदर्दी ने, देखो कैसा सिला दिया। 


तनिक नहीं दुख होता मुझको, एक बार सच कह देता,
मजबूरी थी उसकी माना, समझौता फिर कर लेता।

तोड़ के मेरे अरमाँ सारे, वो आहत कर गया हिया,
प्यार का मेरे बेदर्दी ने, देखो कैसा सिला दिया।


***** नीता सैनी, दिल्ली

Sunday 6 March 2016

महादेव पर कुण्डलिया


शंकर नारी वेश में, नाचे केशव संग
मदमाती धरती खिली, बाजे खूब मृदंग

बाजे खूब मृदंग, देव सब ख़ुशी मनाएं
महादेव का नृत्य, देख केशव हर्शायें
 

लक्ष्मण भोले-नाथ, नाचते नारी बनकर
दे सबको वरदान, सदा ही भोले शंकर


भोले शंकर आपने, किया गरल का पान
रुद्र रूप में आप ही, आये बन हनुमान
आये बन हनुमान, जिन्हें सब व्यथा सुनाये
आप जटा में थाम, धरा पर गंगा लाये
लक्ष्मण शिव के नृत्य, भेद न कोई खोले
रहे हिमालय धाम, कहाते शंकर भोले


*** लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

  रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये बढ़ते हैं भाव...