Sunday 14 February 2016

नव भोर

 


है डूब रहा
सूरज,
ढल रही शाम,
हुआ सिंदूरी आसमान,
ऐसी चली हवा
ले उड़ी संग अपने
पत्ता पत्ता,
छोड़ अपना अस्तिव
टूट कर बिखर गये,
चले गये सब जाने कहाँ,
देख रहा खड़ा अकेला
असहाय सा पेड़,
सूनी सूनी शाखायें
कर रही इंतज़ार
नव बहार का,
होगा फिर फुटाव
नव कोपलों का,
होंगी हरी भरी
डालियाँ फिर से,
उन पर
खिलेंगे फूल फिर से,
आयेंगी बहारें फिर से,
होगी नव भोर फिर से,
उड़ेंगे
नीले अम्बर पर पंछी फिर से,
सात घोड़ों से
सजेगा रथ दिवाकर का,
नाचेंगी अरुण की रश्मियाँ,
मुस्कुराती रहेगी ज़िंदगी
बार बार


*** रेखा जोशी

2 comments:

  1. hardik abhar Sapan ji ,Govind ji

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर स्वागत है आद. Rekha Joshi जी, सादर नमन

      Delete

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...