Sunday 31 January 2016

देश को समर्पित एक गीत

 
रास्ट्रीय अस्मिता की रक्षा हेतु प्राण आहुति को,
सीमाओं पर कर अरि शमन त्राण आत्मचर्कृति को,
करते जो जय हिन्द वन्देमातरम का उद्घोष,
बलिदानी सैन्य शक्ति देती प्राण देश प्रस्तुति को


अस्सी घाव खाकर भी राणा सांगा डटे रहे थे,
मातृभूमि की रक्षा को रणभूमि पर खड़े रहे थे,
बाप्पा रावल का शौर्य क्या हम कभी भूल पायेंगे
मेवाड़ी नारियों का जोहर कभी भूल पायेंगे।


याद है गुरु गोविन्द जी के दो सुतों का बलिदान,
याद है राणा प्रताप का देशप्रेम का अभिमान,
याद है वीर शिवाजी की मराठा वाली शान,
याद है आल्हा उदल के अद्भुत पराक्रम का गान।


कहाँ गया वीर रानी हाडा का वह मस्तक दान,
कहाँ गयी पन्ना धाय के वात्सल्य की पहचान,
कहाँ गयी झाँसी की रानी की उन्मुक्त दहाड़,
कहाँ गया रानी दुर्गावती का गजनवी पछाड़।


आजाद बिस्मिल भगत अश्फाक की वह क़ुरबानी,
सुभाष वीर सावरकर तिलक लालाजी की कहानी,
क्या क्या गिनवायें देश की धरती तो भरी पड़ी है,
वीरों के बलिदान से यह भूमि तो हरी भरी है।


इन सिंहों ने दे आहुति प्राणों की बचाई शुचिता,
लाये थे ये स्वतंत्रता स्वर्णिम भविष्य बनाने को,
कुछ गीदड़ों ने बेच डाली यह पावन स्वतंत्रता,
विकृत राजनीति और निज स्वार्थ सिद्धि पाने को।


तरंगित भावनायें स्वतः उत्कर्ष पर होती हैं,
देह शिराएँ शोणित प्रवाह से स्पंदित होती हैं,  

चिंगारियाँ स्फुरित होती हैं उसे भस्म करने को,
सीमा पर जब जब बाधायें प्रतिपादित होती है।


====सुरेश चौधरी

Sunday 24 January 2016

मासूम लहू


 
यह एक ऐसा दर्द है जिसकी न कोई थाह
चीर कलेजा रख दिया रह रह निकले आह


रह रह उठती हूक वह मंज़र कैसा होगा
खेले जिसके संग तड़पता देखा होगा



पथरा जाये आँख नज़ारा देखा होगा
ढेर मासूमों का जब तड़पता देखा होगा


रीति आँखों से उसने सहलाया होगा
अंतिम बार उसे जब माँ ने नहलाया होगा


पूछा होगा ईश से चुप रहा वह कैसे
मासूमों का लहू बहने दिया क्यूँ ऐसे


क्या था उनका दोष करते थे हँसी ठिठोली
इंसानी वहशत बनी जब, सीने की गोली


अब तो खालीपन है हर आँगन हर ठाँव
आँसू ही अब मरहम हैं रोये सारा गाँव

 
***सरस दरबारी***

Sunday 17 January 2016

घनाक्षरी


 
ढोल, ताशे रहे बाज़, नेह के सलोने साज़,
गीत दिल खुशियों का, गा रहा मलंग है।

लोहड़ी की मची धूम, पोंगल भी आया झूम,
रंग रंग आज देखो, उड़े रे पतंग है।

गुड़ तिल हुए खास, घोलते ज़ुबां मिठास,
संक्रांति में नव आज, छा रही उमंग है।

प्रेम का करो व्यापार, सिखाते यही त्यौहार,
ज़िन्दगी में सुख तभी, मिलेगा दबंग है।


*** दीपशिखा सागर***

Sunday 10 January 2016

छोटा मुँह और बड़ी बात पर एक कुण्डलिया


छोटे मुख से कर रहे, बड़ी बड़ी क्यों बात,
खुद को तो देखो जरा, पहचानो औकात।
पहचानो औकात, तुला पर मन की तौलो,
परखो बारम्बार, बात तब मुख से बोलो।
कह "दबंग" कविराय, खरे हो या फिर खोटे,
कभी न ऊँचे बोल, निकालो मुख से छोटे।
 


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रवि कांत श्रीवास्तव "दबंग" ग्वालियर

Sunday 3 January 2016

नया/नवीन/नूतन पर दोहे


पंद्रह से सोलह हुआ, गाते गाते गीत 
साल सोलवां आ गया, बन करके मनमीत1

विगत वर्ष जो रह गये, आदि व्याधियाँ शेष 
रहें न नूतन वर्ष में,उनके भी अवशेष2

मंगलमय नव वर्ष हो, दे सबको समृद्धि
मान सम्पदा कीर्ति में, हो दिन दूनी वृद्धि3

नई किरण के साथ ही, आया नवल प्रकाश
लेना है संकल्प नव, छूने को आकाश4

हों प्रसन्न माँ शारदे, कृपा करें भरपूर
सृजन कार्य होता रहे, संकट हों सब दूर5

**हरिओम श्रीवास्तव**

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

  रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये बढ़ते हैं भाव...