Sunday 22 November 2015

एक गीत



अरुण उषा में उगता सूरज, स्वर्णिम किरणें लाया है
सोच रही दृग बंद किये मैं, मन में कौन समाया है


तन उन्मादित मन उल्लासित, पौर-पौर इतराया यूँ
स्वप्न हुए सब वासन्ती, मन मेरा इठलाया यूँ
शुष्क हृदय को आर्द्र बनाता, बरखा सम मन भाया है
अरुण उषा में उगता सूरज, स्वर्णिम किरणें लाया है


प्राची की आभा में देखो, पंछी बन कर चहक रहा
दिशा-दिशा को सुरभित करता, चन्दन वन सा महक रहा
अन्तर्मन के उपवन को वो, प्रमुदित करने आया है
अरुण उषा में उगता सूरज, स्वर्णिम किरणें लाया है


***** दीपिका द्विवेदी 'दीप'

2 comments:

  1. "सहज साहित्य" में रचना के स्थान पाने से अतिउत्साहित हूँ ,शुक्रिया मान्यवर

    ReplyDelete
  2. सादर स्वागत है आपका आदरणीया Deepika Dwivedi जी, सादर नमन

    ReplyDelete

छंद सार (मुक्तक)

  अलग-अलग ये भेद मंत्रणा, सच्चे कुछ उन्मादी। राय जरूरी देने अपनी, जुटे हुए हैं खादी। किसे चुने जन-मत आक्रोशित, दिखा रहे अंगूठा, दर्द ...