नदी का जल
बादल की बूँद बन
बहता है घने जंगल की
डालियों पर
मुग्ध हो जाता है वह
एकाकार हो
जंगल झाँकने लगता है उसमें
साफ़ परिदृश्य
पाखी, तितली, हिरण और
अनछुई बदली
छू लेती है
नदी का अंतर्मन
जब नदी बर्फ हो
बूँद बूँद बन उड़ रही थी
तो भी नदी का रंग
श्वेत ही था
उड़ती भाप सा
नदी हमेशा से पाक
पवित्र थी,
जब गाँव गाँव भटकी
जब शहर घूमी
जब समुन्द्र से मिली
या फिर बादल बन ढली
बचा सको तो नदी का रंग
बदरंग होने से
तो नदी बनना होगा
तर्पण करना होगा
अपने आँख की
बहती अश्रु धारा बचानी होगी
जहाँ से फूटते हैं सभी
आत्मीय स्त्रोत।
*** मंजुल भटनागर ***
पाखी, तितली, हिरण और
अनछुई बदली
छू लेती है
नदी का अंतर्मन
जब नदी बर्फ हो
बूँद बूँद बन उड़ रही थी
तो भी नदी का रंग
श्वेत ही था
उड़ती भाप सा
नदी हमेशा से पाक
पवित्र थी,
जब गाँव गाँव भटकी
जब शहर घूमी
जब समुन्द्र से मिली
या फिर बादल बन ढली
बचा सको तो नदी का रंग
बदरंग होने से
तो नदी बनना होगा
तर्पण करना होगा
अपने आँख की
बहती अश्रु धारा बचानी होगी
जहाँ से फूटते हैं सभी
आत्मीय स्त्रोत।
*** मंजुल भटनागर ***
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