मिरे ज़ेहन पे इस तरह से छा गया कोई,
कि गुल में जैसे महक सा समा गया कोई
पुराने मौसमों की याद में गुम था मैं तो,
नए मौसम सा दबे पाँव आ गया कोई
अक़्ल कहती है कि अब उसपे यकीं मत करना,
मगर यकीं की वज़ह दिल बता गया कोई
वो शख़्स कौन था पलभर की मुलाक़ात ही में,
ज़ेहन से जैसे के पर्दा हटा गया कोई
मुझे पढ़ना है वही चेहरा एक अर्से बाद,
मगर ये क्या, मेरा चश्मा छुपा गया कोई
*** नरेन्द्र शर्मा ***