Friday 22 May 2015

प्रकृति-न्यास


नीला आसमान
सहसा गुलाबी हो गया
तारे झिलमिलाने लगे
क्षितिज मुस्कुराने लगा
बादल कुछ गुनगुनाने लगे
आसमान के झरोखे से
नीचे झाँकता चाँद
कुछ रूमानी सा होने लगा
बहती हवाओं ने
जाने क्या घोला एहसासों में
ज़र्रा-ज़र्रा पानी पानी सा होना लगा
पूरी क़ायनात में एक स्वप्निल आभास था
फरिश्तों की चहलकदमी
महसूस कर रहा था दिल
लगता है फिर कहीं हारी है नफरत
प्रेम कहीं फिर उतरा खरा है
कुदरत का खज़ाना लुटकर भी भरा है
धरती का मन आज कितना
हरा है ....।।

 
~~निशा

No comments:

Post a Comment

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...