Sunday 26 April 2015

बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख।




बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले भीख
 दाता बनकर तुम रहो, यही बडों की सीख।।1।।  

विद्या उत्तम दान है, खर्चे से बढ़ जाय
 जब प्रसन्न माँ शारदे, बिन माँगे ही पाय2।। 

जीवन यह अनमोल है, चला न जाये व्यर्थ
लगे अगर परमार्थ में, तो ही निकले अर्थ3।।  

काम क्रोध मद मोह का, यहाँ निरंतर वास
 करने से उपकार ही, फैले परम सुबास4।।  

मिलता है सब कर्म से, संतों की यह सीख
बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले भीख5

**हरिओम श्रीवास्तव**

Sunday 19 April 2015

मिथ्या- कथन




तथ्य क्या है?
....... क्या कहूँ 

सत्य क्या है?
....... क्या कहूँ
 
है दो आयामी सच मेरा
क्या झूठ है? लालच मेरा? 
कोई तपी त्यागी हूँ नहीं, 
मैं वीतरागी हूँ नहीं 

अगर भक्ति मुझमें है, 
तो फिर आसक्ति  
मुझमें है 
यही उपलब्धि मेरी 
कि शीलवान हूँ
किस तृष्णा से मगर 
अनजान हूँ?  
क्षुद्रता मुझसे 
है इतर कहाँ 
दुबके हुए सत्य 
हैं मुखर कहाँ?  
न तो विनीत सी 
कहीं प्रथाएँ हैं। 
प्रार्थनाओं में भी 
बस कामनाएँ हैं 
जहाँ ज़िन्दगी ही 
एक स्वांग हो। 
कैसे झूठ का फिर 
परित्याग हो। 
ज्ञान भी अर्जित किया 
तो चतुरता लिए। 
स्पर्धा संग विद्वेष की 
प्रचुरता लिए 
हैं तृष्णायें गीत गा रहीं
वय आ रही 
वय जा रही। 
अब न वानप्रस्थ है 
न संन्यास है। 
अंतिम साँस तक 
बस संत्रास है 

कौन सी उपलब्धियाँ, 
किस सत्य को संचित करे 
इतिहास अपने पृष्ठों पर  
क्या-क्या मेरा अंकित करे? 
न आरम्भ में, न परिशिष्ट में 
न किसी कथा विशिष्ट में,  
जाते हुए तन गल जायेगा,
 कितने झूठों के अवशिष्ट में 

( पढ़ा है कि स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हुए धर्मराज युधिष्ठिर की, एक आंशिक असत्य के कारण, दाहिनी कनिष्ठा गल गयी थी)

- ***मदन प्रकाश***

Sunday 12 April 2015

चार दोहे





दूर क्षितिज से उतरती, निर्मल कोमल भोर
विचरण करने नाव से, नदिया में बिन शोर ।1
 
प्रेम विवश ज्यों मिल रहे, धरा गगन के छोर
दृश्य सुहाना देखकर, नाच उठा मन मोर।2 

राह पकड़ तू एक चल, गंध पुष्प सम होय
मार्ग और सरिता कभी, रुके नहीं यह दोय।3 

सरिता से यह सीख लें, चलना आठों याम
तरुवर सा परमार्थ हो, जिसमें चारों धाम।4। 

**हरिओम श्रीवास्तव**

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

  रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये बढ़ते हैं भाव...