Tuesday 17 February 2015

प्रकृति पर पाँच दोहे






अंधकार ने ली विदा, ऊषा का आगाज़।
धानी चूनर ओढ़ ली, धरती ने फिर आज।।1।।

अम्बर से ऊषा किरण, चली धरा की ओर।
दिनकर की देदीप्यता, उतरी है बिन शोर।।2।।

कितनी सुंदर शांत है, यह शीतल सी छाँव।
देख मनोरम प्रकृति को, हर्षित मन का गाँव ।।3।।

सूरज चंदा काल ये, चलते हैं अविराम।
ये रहते गतिमान तो, लगते हैं अभिराम।।4।।

अरुणोदय की लालिमा, कहती उजली भोर।
कर्म करें बढ़ते चलें, सदा लक्ष्य की ओर।।5।


**हरिओम श्रीवास्तव**

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