Sunday 2 November 2014

एक मुक्तक और एक गीत

सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला 
के साहित्यिक मंच पर 
मज़मून 26 में चयनित 
सर्वश्रेष्ठ दो रचनायें 


*** मुक्तक ***

नंगे बदन को एक दुशाला दे गया,
भूखे ग़रीब जन को निवाला दे गया,
आश्वासनों में ज़िन्दगी फिर ये बसर हुई,
उम्मीद की किरण का उजाला दे गया

- प्रह्लाद पारीक


*** गीत *** 
 

शाम मोहक हो गयी, गीत अब रचने लगा 
रात रोशन हो गयी, दीप एक जलने लगा

बादलों ने जल भरा, ये धरा गाने लगी, 
वादियों में सुर सजे, एक सदा आने लगी, 
राग आकुल हो गये, साज अब बजने लगा

पंछियों के दल उड़े, अब सवेरा हो गया,
रोशनी के रथ थमे, ताम घनेरा हो गया,
रीत क़ायम हो गयी, गाँव अब बसने लगे

कोशिशों पे फल लगे, जब कलि ये खिल गयी,
जो दिखे थी अनमनी, अब लगे हर पल नयी,
जीत हासिल हो गयी, मीत एक बनने लगा

- रामकिशोर उपाध्याय

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