सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला
के साहित्यिक मंच पर
मज़मून 21 में चयनित
==========
ज़िंदगी की डगर, संग चलते हुए ,
हमने देखे हैं पत्थर पिघलते हुए।
धूप के सिलसिले छाँव के गाँव में
पाँव चलते रहे यूँ ही जलते हुए ।
पंथ दुर्गम हमें मुस्कुराते लगे
गुनगुनाते रहे हम सँभलते हुए ।
समर्पण को आतुर दिखी इक नदी
हमने देखे समंदर मचलते हुए ।
इस सफ़र का कभी अंत होता नहीं
रश्मियों ने कहा हमसे ढलते हुए ।
*** प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ***