Sunday 17 August 2014

स्वतंत्रता दिवस पर एक कविता

सत्यं शिवं सुन्दरम् - साहित्य सृजन मेखला 
के साहित्यिक मंच पर 
मज़मून 15 में चयनित 
सर्वश्रेष्ठ रचना

मानसिक दासता अब तो बैठी उच्च शैल शिखर पर
 उत्कंठित मन है कैसे बतलाऊँ क्या कथा सुनाऊँ।
 भ्रष्टाचार कहूँ, व्यभिचार कहूँ और अनाचार कहूँ, 
 या अतीत के भारत की गौरव गाथा यथा सुनाऊँ
 
लक्ष्मी का बलिदान, रानी हाड़ा का शीशदान कहूँ, 
 या गर्भ में मारी जाती कन्या की व्यथा सुनाऊँ। 
 छियासठ वर्षों में लगे गंभीर छियासठ घाव कहूँ, 
 या विगत सुनहरे वैदिक युग की सौम्य प्रथा सुनाऊँ।
 
चेतक की टाप कहूँ, प्रताप के भाले की बात कहूँ, 
 या सर कटे शहीदों के बलिदान को अन्यथा सुनाऊँ
 चंदबरदाई, भूषण, सुभद्रा, इनकी ललकार कहूँ, 
 या चाटुकार कवि की लेखनी की असभ्यता सुनाऊँ

जलधि गर्भ से अमिय निकला उस धरा का गुणगान करूँ, 
 या दानव बने इन कर्ण धारकों की कथा बखान करूँ।
 चेतन मानवता के प्रतीक पुरषोत्तम की कथा गान करूँ,
 जड़ दानवता के प्रतीक आज के नायक को महान कहूँ।

सोने की चिड़िया था देश यह उस सोने का गान करूँ, 
 महँगाई की मार कहूँ या रुपैये का अवमान कहूँ। 
 दुर्गा की पूजा कहूँ, या सीता का अभिमान कहूँ,
 दामिनी कहूँ, यामिनी कहूँ, सरे आम लुटती आन कहूँ।

उर के अंगार लिखूँ सीमा पर शहीदों के प्राण लिखूँ,
आते सैन्य शवों पर राजनैतिक घिनौनी चाल लिखूँ।
क्या-क्या कहूँ, क्या-क्या सुनाऊँ, क्या-क्या मनोद्गार लिखूँ
छोटी सी कलम हैं घाव गंभीर बस व्यथित सार लिखूँ।।
सुरेश चौधरी


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