Wednesday 23 April 2014

चन्द पंक्तियाँ

सारे जहाँ में कोई मेरा नहीं हुआ है
क्या-क्या बताऊँ किसको क्या-क्या नहीं हुआ है
मेरी बला से कह कर वो राह छोड़ देगा

मेरी सदा पलट कर वो चाह छोड़ देगा
मैं तो ख़ुदा कहूँगा जैसा नहीं हुआ है

========================== सपन

Monday 14 April 2014

एक क्षणिका

कहते थे कि कुछ अनजाना हुआ,
हुआ तो बस पहचाना हुआ,
कहीं सुना था हमने भी,
जो होता है, सो तो होना ही था,
तो क्या हुआ?
क्यों हुआ?
कहते ही क्यों हो?
अब तो ये जीवन का बस एक पहलू है,
के होने-जाने का दोष नहीं,
वह तो राजनेताओं की तरह दलबदलू है.
============================= सपन

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

  रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये बढ़ते हैं भाव...