आदमी भूख से डर गया,
भूख की मार से मर गया,
ये रही दूर जब ऐ ‘सपन’
सहर वो रात की कर गया।
क़तआ के बारे में संक्षिप्त
जानकारी ...
यह चार मिसरों (पंक्तियों) की एक कविता होती है, जो एक ही बह्र में होती है और इसमें रदीफ़ और क़ाफिया
का भी ख़याल आवश्यक होता है। दरअसल यह एक तरह से ग़ज़ल की तरह से ही लिखी जाती है और
तुलना की जाए तो ग़ज़ल के मत्ले और एक शे’र की रचना कही जा सकती है, लेकिन यह ग़ज़ल से
इस प्रकार भिन्न है कि इसमें भाव और विषय की निरंतरता होती है, जबकि ग़ज़ल के सभी
शे’र स्वतंत्र भाव वाले हो सकते हैं। हिंदी में यह मुक्तक के करीब जैसी रचना होती
है, किन्तु मुक्तक कभी क़तआ नहीं है। प्रस्तुत क़त'आ में बह्र - बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
तक्ती - फ़ा-इ-लुन फ़ा-इ-लुन फ़ा-इ-लुन फ़ा-इ-लुन
रदीफ़ - गया
क़वाफ़ी - डर, मर, कर
विश्वजीत 'सपन'
08-06-2013
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