Sunday 14 April 2024

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

 

शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।
किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी।

ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई।
बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई।
अमा रात्रि भी नहीं भर्त्सना योग्य कहीं।
भले पूर्णिमा खिले ज्योत्स्ना पूर्ण वहीं।
कवियों हित होना है मण्डन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

उषा मधुर मुस्कान बिखेरे जग के हित।
अरुण रंग लालिमा लुटाए लेकिन मित।
अमृत वेला आनन्दित कर दे मन को।
नवल जागरण और संचरण दे तन को।
भासमान दिनकर का वन्दन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

फूलों से मकरन्द अभी है चुआ नहीं।
सम्प्रति अक्षत रहे किसी ने छुआ नहीं।
पारदर्शिता तुहिन कणों से झाँक रही।
शुचिता पावनता की कीमत आँक रही।
अमल धवल शुचि प्रेम निमज्जन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 7 April 2024

वह मित्र होता है - गीत

 

मान देता है सदा जो हर घड़ी वह मित्र होता है।
पुष्प मन से गंध चुन मन सींच दे वह इत्र होता है।

बिम्ब अपना सा लगे जब अन्य की स्वर साधना लय में।
जब किसी के आचरण में निज प्रभा घुलने लगे मय में।
शुद्ध निश्छल भाव से मन में पिघल कोई बुला जाए।
है सखा विपदा पड़े तो उस घड़ी में पास आ जाए।
मौन रह मन की उदासी में उतर नव चित्र होता है।
बालपन में माँ सखा बन करुण रस को सींचती रहती।
मौन भाषा हो पिता की युवानी भी रीझती रहती।
दोस्त हो जाते युगल मन प्रेरणा निज नेह को सेते।
जीवनी की नाव सुख दुख की लहर के मध्य में खेते।
भावना हो प्रीति प्लावित आचरण सुपवित्र होता हैं।

पेड़ पौधे नदी पोखर झील झरने निर्मल दिशाएं।
उच्च शिखरों पर घुमड़ते खण्ड बादल मंजुल हवाएं।
पक्षियों की चहचहाहट पालतू पशु दोस्त से होते।
ये न हों तो जीवनी में हम मनस संवेदना खोते।
मेल से हैं गीत के रँग मित्र गुण सुचरित्र होता है।
मान देता है सदा जो हर घड़ी वह मित्र होता है।

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 31 March 2024

जीवन की गाड़ी - एक गीत

 

चिंता और उदासी लादे, जीवन की गाड़ी चलती।
लेकिन अंतस गह्वर में तो, लौ आशा की ही जलती।।

थका मुसाफिर मंजिल ताके, चैन नहीं उसको आता।
पाँव बढ़ाता जब साहस से, सफल तभी वह हो पाता।।
कर्महीन तो बैठे - बैठे, मंजिल के सपने देखे।
दुर्गम होगा पथपर चलना, बात यही उसको खलती।।

जब भी आती दुख की आँधी, तहस-नहस सुख कर देती,
नेह -स्नेह की पावस आ कर, सहज हरितिमा भर देती।।
निर्विकार तकती आँखों में, तब सुधियाँ नर्तन करती,
दिन-दोपहरी चलते चलते, मृत्यु वरन करके पलती।।

अपने किये कराये का जब, गुणा - भाग मानव करता,
भयभीत हुआ वन में जैसे, कदम-कदम वह है रखता।
जीवन बन जाता तब योगी, श्वास-श्वास बनके मोती।
समझो मानव कर्म इसे ही, आशा कभी नहीं गलती।।
*** साधना कृष्ण

Sunday 24 March 2024

छंद सार (मुक्तक)

 

अलग-अलग ये भेद मंत्रणा, सच्चे कुछ उन्मादी।
राय जरूरी देने अपनी, जुटे हुए हैं खादी।
किसे चुने जन-मत आक्रोशित, दिखा रहे अंगूठा,
दर्द सभी का अपना होगा, सुधी बने प्रतिवादी।

कहें सयाने लोग अजूबे, अपनी विगत कहानी।
बीती बातें सीख पुरानी, लगती हुई रवानी।
मंत्र मुग्ध जो सुनता आया, सधे न सच्चा झूठा,
प्राणवान हो संस्कृति अपनी, नहीं चले मनमानी।

एक रंग में अभ्र गगन पर, कहते काले भूरे।
देगा पानी ये गुणधानी, नयन पारखी घूरे।
प्रकृति आपदा झेलें हम सब, परिवर्तन बलशाली,
सही मशवरे की अनदेखी, गिरते सुखद कँगूरे।
*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 17 March 2024

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

 

रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के
करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के

आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये
बढ़ते हैं भाव रोज़ ही राजाधिराज के

ख़ुद आबनूस हैं तो क्या दुल्हन हो चाँद सी
नख़रे बड़े अजीब हैं मिर्ज़ा-मिज़ाज के

बारात की न पूछें नशा ख़ूब है किया
नागिन का नाच नाचें तनुज नाग-राज के

शादी का भोज थाली से नाली में जा रहा
ज़िंदा ग़रीब कैसे रहें बिन अनाज के

बेटी न बोझ सर पे क्यूँ कर्ज़ा उठा लिया
लड़की का बाप मर रहा क्यूँ बिन इलाज के

'सूरज' नक़ल न रास रईसों की आएगी
शादी, विवाह बन गये मसले क्यूं लाज के

सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।

Sunday 10 March 2024

विनती सुनो हमारी - एक गीत

 

हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।

उग्र महेश्वर हे परमेश्वर, शिव शितिकंठ अनंता।
हे सुरसूदन हरि कामारी, महिमा वेद भनंता‌।‌‌।
रुद्र दिगंबर हे त्रिपुरांतक, प्रभु कैलाश बिहारी।
हे शिव शंकर औघढ़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

अष्टमूर्ति कवची शशि शेखर,देव सोमप्रिय नाथा।
गंगाधर अनंत खटवांगी, चरण धरूॅं निज माथा।।
अनघ भर्ग सर्वज्ञ अनीश्वर, विश्वेश्वर रहा निहारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

पंच वक्त्र श्रीकंठ शिवा प्रिय, तारक हे कैलाशी।
व्योमकेश हे विष्णू वल्लभ, जगत पिता सुख राशी।।
शोक हरो प्रभु सकल विश्व के, सारा जगत दुखारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'
All reac

Sunday 3 March 2024

जीवन तो अनमोल है - दोहा छंद

जीवन तो अनमोल है, इसके लाखों रंग।
पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग।।1।।

जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार।
कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार।।2।।

जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।
अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत अर्थ।।3।।

जीवन तो अनमोल है, इसके अनगिन रूप।
इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप।।4।।

जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।
बहुत कठिन है जानना, इसका अर्थ विशाल।।5।।

जीवन तो अनमोल है, रखना इसका मान।
देना इसकी गंध को, एक नई पहचान।।6।।

जीवन तो अनमोल है, सुख - दुख इसके तीर।
एक तीर पर कहकहे, एक तीर पर पीर।।7।।

*** सुशील सरना

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...